The NWMI is deeply concerned about the dire warnings and death threats issued to Pushpa Rokde, a journalist based in Bijapur in the Bastar division of Chhattisgarh. The threats were in connection to short-term work unconnected with journalism, as well as in relation to her journalistic work. NWMI deplores all attempts to threaten and intimidate journalists in the course of carrying out their duties.
On December 13, 2020, a death threat, purportedly signed by the Maoist South Bastar Pamed Area Committee, was pinned to a tree near Puskunta village in Bijapur district. In the weeks following its appearance Pushpa sought clarifications about the poster but received none. Nor was there a denial making it clear that the poster was not issued by the Committee. The threat was followed up on January 28, 2021 with a hand-written note addressed to Pushpa, again purportedly from a Maoist functionary. The note, containing thinly veiled threats, accused her of being a police informer with regard to protest rallies. However, Pushpa states that during the Covid19 pandemic-related lockdown, she was informed by activists about four protest rallies and requested to cover them as a journalist, which she did.
NWMI has learnt that most newspapers had stopped publishing hard copy editions during the nationwide lockdown imposed to contain the pandemic. The few copies of the e.paper that were being printed could not be delivered to Bastar in the absence of vehicular movement. Due to a common and long-standing practice in Chhattisgarh (and elsewhere), many journalists’ salaries are unfortunately contingent on the advertisements they can secure for the publications they work for. The steep drop in advertisement revenue last year has reduced journalists in such situations to penury. It is an indicator of the enormous financial challenges of being a journalist in rural and small-town India that they are often forced to take up non-journalistic work to sustain themselves.
Pushpa’s precarious financial situation was worsened by medical bills following an accident while she was investigating a police encounter site in Pamed area, where many Adivasi youth had been picked up by the police. Under the circumstances, she was constrained to temporarily take up work supervising road construction works in an interior village, while continuing her reporting for the e.paper.
The death threats issued in December 2020 were in connection with this other work. To date no Maoist group has denied or retracted the death threats issued to Pushpa Rokde.
Given her consistent reporting on people’s issues, the allegation that she is a police informer is not just mischievous, but dangerous in a polarised conflict zone such as Chhattisgarh, where Maoists have meted out brutal punishments to people assumed to be ‘police informers’. Apart from killing journalists Sai Reddy and Nemichand Jain in Bastar in 2013, Maoists have killed villagers and contractors suspected of being police informers. The latest such incident in Chhattisgarh took place on January 26, 2021.
Pushpa Rokde’s exemplary journalistic work
Over the past decade, Pushpa has been consistently reporting on police atrocities as well as local issues and problems faced by the Adivasi villagers. She has faced the wrath of the administration for many of her stories. She has reported on issues related to jal (water), jungle (forest) and zameen (land) – critical to Adivasi life in Chhattisgarh.
Pushpa has highlighted villagers’ opposition to the setting up of paramilitary camps in the interiors, their protests against roads to facilitate iron ore mining projects, and their opposition to mining due to both environmental destruction and denial of compensation for land acquired from local residents. She has also reported on cases of sexual assault by security forces.
Pushpa’s people-centred reporting on Adivasi rights stands out, as does her willingness to speak up for human rights. On several occasions, upon receiving information about police crackdowns in villages, she has investigated the matter, with her work sometimes leading to the release of innocent village youth from police lock-ups.
While the controversial draft Chhattisgarh Protection of Mediapersons Act, circulated in December 2020, aims to allow broadly defined “newsgatherers” to carry out their work without fear or repercussion, for local women journalists like Pushpa Rokde, who live and work in the area, this is a distant dream.
The NWMI stands in solidarity with Pushpa Rokde and supports her determination to continue to tell untold stories from Bastar.
- The NWMI strongly affirms the right of journalists to report freely and fairly. Independent reporting is in the larger interests of ordinary people eking out a living under the shadow of armed conflict and journalists must be protected so that they can tell their stories.
- The NWMI urges media houses in Chhattisgarh to collectively work towards protecting their journalists in every way; strengthening their financial condition and providing job security is a crucial step towards enabling them to work freely and without fear or favour.
- The NWMI also demands the immediate cessation of threats and intimidatory tactics from all state and non-state agents – and those associated with them– that put undue pressure on journalists and others who are vulnerable to such attempts at intimidation.
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The Network of Women in Media, India
February 4, 2021
नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया ( NWMI), छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के बीजापुर ज़िले की पत्रकार पुष्पा रोकड़े को दी गई धमकियों और गंभीर चेतावनियों पर गहरी चिंता व्यक्त करता है ।यह धमकियां उन्हें उनकी पत्रकारिता के अलावा, अस्थाई रूप से किए गए एक दूसरे काम के संबंध में दी गई हैं।
NWMI, किसी भी पत्रकार को उसके काम और उसकी ज़िम्मेदारियों को निभाने के क्रम में डराने, धमकाने या इस तरह की किसी भी कोशिश की कड़ी निंदा करता है।
13 दिसंबर 2020 को, माओवादियों की ‘दक्षिण बस्तर पामेड़ एरिया कमेटी’ द्वारा कथित तौर पर हस्ताक्षर की गई, मौत की एक धमकी, बीजापुर ज़िले के पुसकोंटा गांव में पेड़ पर लगी हुई मिली। इस पोस्टर के सामने आने के बाद पुष्पा ने इस के संबंध में जानकारी व स्पष्टीकरण तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगा। न ही इस बात से इंकार किया गया या ऐसी कोई बात सामने आई जिससे यह स्पष्ट हो सके कि यह पोस्टर माओवादियों द्वारा नहीं लगाया गया था । 28 जनवरी 2021 को पुष्पा के नाम संबोधित, हाथ से लिखा एक धमकी भरा नोट मिला, जो कथित तौर पर एक बार फिर किसी माओवादी संगठन की ओर से था, और जिसमें पुष्पा पर पुलिस का मुखबिर होने का आरोप लगाया गया था।
पुष्पा ने स्पष्टीकरण दिया कि कोविड-19 की महामारी और उस से संबंधित लॉकडाउन के दौरान, उन्हें कार्यकर्ताओं के ज़रिए चार विरोध रैलियों की सूचना मिली और उनसे एक पत्रकार के तौर पर इन रैलियों को कवर करने का अनुरोध किया गया, जो उन्होंने किया।
NWMI को इस बात की जानकारी मिली है कि उनके अखबार ने लॉकडाउन के दौरान छापना बंद कर दिया था. ई–पेपर की कुछ कॉपियां जो छापी जा रही थीं वह गाड़ियों व आवाजाही पर लगी रोक के कारण बस्तर नहीं पहुंचाई जा सकती थीं। छत्तीसगढ़ (और कई अन्य जगहों) में लंबे समय से प्रचलित तौर तरीकों के मुताबिक, दुर्भाग्य से, कई पत्रकारों का वेतन उन विज्ञापनों पर निर्भर करता है, जो वह उस अखबार के लिए जुटाते हैं। ऐसे में पिछले साल विज्ञापनों में हुई भारी कटौती से पत्रकारों के हालात को बेहद मुश्किल बना दिया है। यह भारत के छोटे शहरों, कस्बों व ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों की आर्थिक चुनौतियों को बयान करता है, और इस बात का संकेत देता है कि इन हालात के चलते वह अक्सर पत्रकारिता के साथ–साथ दूसरे काम करने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
पुष्पा के लिए, स्थिति और भी गंभीर हो गई जब पामेड़ क्षेत्र में एक पुलिस मुठभेड़ की पड़ताल के दौरान, जिसमें पुलिस ने कई आदिवासी युवाओं को उठा लिया था, वह एक दुर्घटना का शिकार हो गईं और उन पर कई तरह के मेडिकल खर्चों का बोझ आ गया। ऐसे में उनके लिए यह ज़रूरी हो गया कि वह अस्थाई रूप से, एक सुदूर गांव में सड़क निर्माण से जुड़े काम के लिए सुपरवाइजर का काम कर लें और ई–पेपर के लिए रिपोर्टिंग जारी रख सकें।
दिसंबर 2020 को पुष्पा को दी गई मौत की धमकी इसी दूसरे काम से संबंधित थी। आज तक किसी भी माओवादी संगठन ने पुष्पा रोकड़े को दी गई इन धमकियों से इंकार नहीं किया है या उन्हें वापस लिया है।
आम लोगों के मुद्दों पर पुष्पा की रिपोर्टिंग को देखते हुए, उन पर पुलिस का मुखबिर होने का आरोप, कोई शरारत नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ जैसे हिंसा प्रभावित और गुटों में बटे हुए इलाके में खतरनाक साबित हो सकता है, जहां माओवादियों ने उन लोगों को बेहद क्रूर तरीकों से दंडित किया है जिन्हें ‘पुलिस का मुखबिर‘ कहा गया। साल 2013 में बस्तर में पत्रकार साई रेड्डी और नेमीचंद जैन की हत्या के अलावा, पुलिस मुखबिरों के नाम पर माओवादियों ने उन ग्रामीणों और ठेकेदारों की हत्याएं की हैं, जिन पर उन्हें शक था। ऐसे किसी मामले में छत्तीसगढ़ में हुई सबसे ताज़ा घटना 26 जनवरी, 2021 की है।
पुष्पा रोकड़े का उल्लेखनीय पत्रकारिता
पिछले दस साल में, पुष्पा लगातार पुलिस द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के साथ–साथ स्थानीय मुद्दों और आदिवासी ग्रामीणों द्वारा झेली जाने वाली समस्याओं पर रिपोर्टिंग करती रही हैं, जिसके लिए उन्हें प्रशासन के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा है। उन्होंने छत्तीसगढ़ में आदिवासी जीवन के लिए ज़रूरी जल, जंगल और ज़मीन से जुड़े मुद्दों पर रिपोर्टिंग की है।
पुष्पा ने पैरामिलिट्री बल द्वारा सुदूर गांवों में कैंप बनाने को लेकर गांववालों के विरोध, लोहा खनन की परियोजनाओं के लिए सड़क बनाने, पर्यावरण को होने वाले नुकसान और स्थानीय लोगों से ली गई ज़मीनों की एवज़ में मुआवज़ा न दिए जाने के चलते खनन का विरोध किए जाने जैसे मुद्दों को अपनी पत्रकारिता के ज़रिए उठाया है। उन्होंने सुरक्षा बलों द्वारा महिलाओं के साथ की जाने वाली यौन हिंसा के मामलों पर भी रिपोर्टिंग की है।
आदिवासियों के अधिकारों को लेकर पुष्पा की आम लोगों पर केंद्रित रिपोर्टिंग का असर हमेशा देखने को मिलता रहा है। साथ ही मानवाधिकारों के लिए बोलने की उनकी इच्छाशक्ति भी उन के काम को महत्वपूर्ण बनाती है। कई मौकों पर, गांवों में पुलिस की छापेमारी और कार्रवाई की सूचना मिलते ही उन्होंने इन मामलों की पड़ताल की है, जिसके आधार पर अपनी रिपोर्ट के चलते कई बार वह गांव के निर्दोष युवकों को पुलिस की हिरासत से छुड़ाने में कामयाब रही हैं।
जहां एक ओर, दिसंबर 2020 में प्रसारित विवादास्पद, ड्राफ्ट छत्तीसगढ़ प्रोटेक्शन ऑफ मीडिया पर्सन एक्ट का उद्देश्य “समाचार एकत्रित करने वालों को” बिना किसी डर या किसी नुकसान के अपने काम को अंजाम देने की अनुमति देने का लक्ष्य रखता है, वहीं पुष्पा रोकड़े जैसी स्थानीय महिला पत्रकार के लिऐ जो इन इलाकों में रहती व काम करती हैं, अब भी यह एक सपना है।
- NWMI पुष्पा रोकड़े के साथ एकजुटता से खड़े होते हुए, बस्तर के इस इलाके की अनकही कहानियां कहने की उनकी दृढ़ता का समर्थन करता है।
- NWMI, स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से रिपोर्टिंग करने के पत्रकारों के अधिकार को दृढ़ता के साथ सामने रखता है. स्वतंत्र रिपोर्टिंग, प्रभावी रूप से आम लोगों के हित में है जो सशस्त्र संघर्ष से घिरे होने के बावजूद अपनी ज़िंदगी जी रहे हैं और इन लोगों की कहानियों को सामने लाने के लिए पत्रकारों की सुरक्षा ज़रूरी है।
- NWMI, छत्तीसगढ़ के मीडिया घरानों से आग्रह करता है कि वह हर रूप में अपने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एकजुट होकर काम करें; उनके आर्थिक हालात को बेहतर बनाना इस दिशा में एक ज़रूरी कदम है ताकि यह पत्रकार स्वतंत्र रूप से और निडर व निष्पक्ष होकर काम कर सकें।
- NWMI राज्य की एजेन्सियां, गैर–राज्य अभिकर्ता, जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) शामिल है, से यह मांग करता है कि डरा-धमका कर पत्रकारों और संबंधित व्यक्तियों पर दबाव डालने की कोशिशों पर तुरंत रोक लगाए।
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द नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया
फरवरी 4, 2021