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मध्य प्रदेश चुनाव 2023: आधी आबादी की चुटकी भर हिस्‍सेदारी

मध्य प्रदेश चुनाव 2023: आधी आबादी की चुटकी भर हिस्‍सेदारी

By विधुल्लता

A woman participates in a marathon in Mandu, Madhya Pradesh, organised by the Election Commission of India for greater voter awareness and participation in the upcoming Assembly Elections in Madhya Pradesh. Photo courtesy: Election Commission of India/X

Translated to English by Sumita Jaiswal

आज देश भर में राजनीतिक पार्टियां जातिवार गणना की मांग और जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्‍सेदारी का नारा बुलंद कर रही हैं। हाल ही में राजद अध्‍यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बिहार प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आयोजित बिहार के पहले मुख्‍यमंत्री श्रीकृष्‍ण सिन्‍हा की जयंती समारोह में बतौर मुख्‍य अतिथि जोर देकर कहा कि केंद्र में इंडिया गठबंधन सत्‍ता में आई तो  देश भर में जाति आधारित गणना कराई जाएगी। इसके बाद जिसकी जितनी आबादी होगी उसी हिसाब से उसकी राजनीतिक भागीदारी तय होगी। आबादी और भागीदारी के सियासी घमासान के बीच दिलचस्‍प यह है देश भर में आधी आबादी की राजनीतिक हिस्‍सेदारी पर लगभग ढाई दशक तक सभी राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों ने चुप्‍पी साध रखी थी। राजनीति में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए महिला आरक्षण बिल सबसे पहले 1996 में संसद में लाया गया था। बहरहाल, कुछ संशोधनों के साथ सितंबर 2023 में देश के दोनों सदनों से नारी शक्‍त‍ि वंदन विधेयक पास हो गया, जिसके अनुसार देश की संसद और राज्‍यों की विधानसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत सीट देना अनिवार्य होगा। हालांकि यह कानून तत्‍काल लागू न होकर 2026 में होनेवाले जनगणना और उसपर परिसीमन के बाद लागू होगा। इस बीच देश के पांच राज्‍यों मध्‍य प्रदेश,  छत्‍तीसगढ़, राजस्‍थान, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव 2023 की रणभेरी बज गई है। इसी के साथ महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मंजिल तक पहुंचने का सफर इन पांच राज्‍यों के चुनावी रास्‍ते से गुजरना तय है। इन राज्‍यों में महिला प्रत्‍याशियों की संख्‍या बढ़ाने के कानून और जमीनी हकीकत, बहस का बड़ा विषय बनकर उभरा है। अब देखना यह होगा कि नारी शक्‍त‍ि वंदन विधेयक सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है या वाकई राजनीतिक पार्टियां महिला नेतृत्‍व पर भरोसा जताती है।

भागीदारी बढ़ाने की चुनौती

मध्‍य प्रदेश विधान सभा चुनाव 2023 में एक ही चरण में 17 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। वहां प्रमुख रूप से भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने आधी आबादी का वोट पाने की जुगत में घोषणाओं और मुफ्त रेवडि़यों की बौछार कर दी है। मगर विधानसभा चुनाव के लिए जब दोनों प्रमुख राष्‍ट्रीय पार्टी द्वारा जारी उम्‍मीदवारों की सूची देखते है, तो निराशा होती है। मध्‍य प्रदेश की 230 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा ने 28 तो कांग्रेस ने 29 महिला उम्‍मीदवारों को चुनावी दंगल में उतारा है। यह भी गौरतलब है कि चुनावी दंगल में डटे छह राजनीतिक दलों में सिर्फ आम आदमी पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष महिला हैं। इससे स्‍पष्‍ट है कि महिलाओं की आबादी के हिसाब से उनकी हिस्‍सेदारी बेहद कम है। यह तब है, जब मध्‍य प्रदेश में 48 प्रतिशत यानी 2,72,33,945  महिला वोटर  हैं। यहां 13 जिलों के 29 विधानसभा सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्‍या पुरुषों से ज्‍यादा है, जिसमें छह आदिवासी जिले शामिल हैं। यानी महिला मतदाता किसी भी पार्टी की जीत या हार में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।

 सदन में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने की कानूनी प्रतिबद्धता और वर्तमान में वास्‍तविक स्‍थ‍िति को तुलनात्‍मक रूप से देखें तो मघ्‍य प्रदेश की 16वीं विधानसभा में महिला प्रत्याशियों की भागीदारी  चुटकी भर ही मानी जायेगी। वर्तमान में 29 सीटों पर महिला प्रत्‍याशी चुनावी मैदान में हैं। आरक्षण लागू होने के बाद 76 सीटों यानी लगभग ढाई गुणा अधिक सीटों पर महिला प्रत्याशियों को अनिवार्य भागीदारी देना चुनौतीपूर्ण होगा।

कांग्रेस महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष विभा पटेल का कहना है कि जब महिला आरक्षण देना ही था, तो इसी चुनाव से लागू करना था। भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि पार्टियों को महिलाओं को अधिकतम टिकट देना था, महिलाओं पर पार्टियों को और अधिक विश्वास करना होगा, तभी उन्हें उनका सही हक़ मिल पायेगा।

दीगर है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 1993 से 2018 के दौरान कुल 1209 महिला प्रत्‍याशियों ने चुनावी मैदान में किस्‍मत आजमाई और इनमें से कुल 133 महिला जीतकर सदन पहुंचीं। यानी महिला उम्‍मीदवारों की जीत की दर करीब 10 प्रतिशत है। 2013 में सर्वाधिक 30 महिला उम्‍मीदवारों के सिर पर जीत का ताज सजा। इसी तरह लोकसभा में 1957 से 2014 तक के चुनावों में 1962 और 2009 में छह महिला संसद पहुंची। 2019  में चार और 1967, 1991 और 1996 में प्रदेश का महिला प्रतिनिधित्व महज पांच महिला सांसदों ने  किया।

दमदार महिला नेतृत्‍व बनाम सामंतवादी सोच

यदि देखा जाए तो जिन चंद  नई  पुरानी  महिलाओं ने अपने दम  पर मध्य प्रदेश में  जगह बनाई हैं, इनमें पूर्व डिप्टी  सीएम और कांग्रेस की नेता प्रतिपक्ष रही जमुना देवी, मंत्री पद से हिमाचल के राज्यपाल के पद तक पहुंची उर्मिला सिंह, भाजपा में जनसंघ की संस्थापकों में से एक विजयाराजे सिंधिया, पूर्व सीएम उमा भारती, भाजपा की पूर्व केंद्रीय मंत्री व विदिशा सांसद स्‍वर्गीय सुषमा स्वराज, पूर्व लोकसभा स्‍पीकर व इंदौर सांसदसांसद सुमित्रा महाजन और आनंदी बेन पटेल ने अपने काम से राजनीति में साबित किया कि वे नेतृत्‍व की कसौटी पर पुरुषों से कम नहीं हैं। हालांकि तेजतर्रार महिला राजनीतिज्ञों का सफर भी सामंतवादी व्‍यवस्‍था के कारण आसान नहीं होता। इस क्रम में पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती, आदिवासी महिला विधायक जमुना देवी, बसपा विधायक राम बाई गोविंद सिंह परिहार, निर्मला भूरिया, उषा शर्मा, पान बाई और हाल ही में प्रशासनिक नौकरी छोड़कर राजनीति में आईं बेहद चर्चित एसडीएम निशा बांगरे प्रमुख नाम हैं।

वर्तमान में प्रमुख चेहरों में कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रही हिना कांवरे और मंत्री रही डॉ. विजय लक्ष्मी साधो और भाजपा में अर्चना चिटनीस जो कि पार्टी प्रवक्ता भी हैं, यशोधरा राजे, कृष्णा गौर के साथ कविता पाटीदार जैसी प्रखर नेत्री हैं। इस बार भाजपा पार्टी ने प्रियंका मीना और प्रतिमा बागरी जैसे नए चेहरों पर भरोसा जताया है और संगठन में  नेहा बग्गा और वर्षा त्रिपाठी को महत्‍वपूर्ण भूमिका दी है। कांग्रेस में इस बार नई  उम्मीद के रूप में रक्षा राजपूत, रश्मि पटेल हैं और संगठन में प्रतिभा रघुवंशी और संगीता शर्मा महत्‍पूर्ण जिम्‍मेदारी संभाल रही हैं।

उमा इस बार स्‍टार प्रचारकों की सूची से भी नदारद

मध्य प्रदेश में महिला नेत्रियों की बात फायर ब्रांड पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती के जिक्र के बिना अधूरी है। हालांकि यह भी विडंबना है कि 2003 में भाजपा को अपने दम पर सत्‍ता के सिंहासन पर पहुंचाने वाली उमा का नाम इस बार स्‍टार प्रचारकों की सूची से भी नदारद है।

Uma Bharti. Photo courtesy: The Times of India

2003 से पहले तकरीबन 20  बरस तक मध्य प्रदेश में कांग्रेस का एकल साम्राज्य रहा। उस समय बिजली, पानी, सड़कों की खराब स्थिति को लेकर जनता मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री  दिग्विजय सिंह का चेहरा बदलना चाहती थी। केंद्र की अल्पमत वाली भाजपा  सरकार ने बहुत मंथन के बाद  2003 में उमा भारती को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया। इसका एक सबसे बड़ा कारण था कि बिजली, पानी के संकट से आखिरकार महिलायें ही जूझ रही थीं। भाजपा की यह रणनीति रंग लाई। उमा भारती ने अपने अंदाज में महिला मतदाताओं का दिल जीत लिया। चुनाव प्रचार के दौरान हालात यह होते थे कि गांवों में उमा भारती की कार जहां-जहां  से गुजरती, कार के शीशे हल्दी कुमकुम से पट जाते।  मध्य प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं ने उन्हें बहुत लाड़-प्यार के साथ अपना कीमती वोट दिया और तीन नवंबर 2003 को उमा मध्‍य प्रदेश की पहली महिला मुख्‍यमंत्री बनीं। राजनीति‍क विश्‍लेषकों का मानना है कि उस समय तक की राजनीति में स्त्रियों के ख़ास मुद्दे लगभग अव्यक्त थे। उमा से मध्य प्रदेश का एक बड़ा स्त्री समुदाय उसके पूरे होने की उम्मीद में था। उमा के नेतृत्‍व में 2003  में  230  सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने 173  सीटों पर रिकार्ड तोड़  जीत हासिल की। सत्‍तारूढ़ कांग्रेस 38 सीटों पर सिमट गई। समाजवादी पार्टी ने सात, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) को तीन,  राष्ट्रीय समानता दल  (आरएसएमडी) तथा  बीएसपी  को दो, सीपीएम को एक, एनसीपी को एक, जेडीयू को एक और दो निर्दलीय उम्मीदवारों  ने भी जीत हासिल की थी।

इस चुनाव की खासियत यह रही कि इसमें कुल मतदाता संख्या  3,79,36,518 थी।   इसमें से 1,97,97, 038  पुरुष और 1,81,39,480 महिलाएं थी। 2003 के चुनाव में 1,12,71,686 महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इस चुनाव में 67.25 फीसदी मतदान हुआ। पुरुषों ने 71 फीसदी और महिलाओं ने 62 .14 फीसदी मतदान किया । 2003 में दिग्विजयी कांग्रेसी सरकार का तख्ता पलटने वाली भाजपा की जीत का पूरा श्रेय उमा भारती को मिला। इसी वर्ष राजस्‍थान में भी वसुंधरा राजे ने भी भाजपा को जीत दिलाई और मुख्‍यमंत्री बनीं। हालांकि वर्तमान में भाजपा ने अज्ञात कारणों से उमा से किनारा कर रखा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि पुरुषों के वर्चस्‍व वाली राजनीति में स्त्री की जीत और कामयाबी पुरुष समुदाय बर्दाश्त नहीं  कर पाता। करीब 9-10  माह बाद ही उमा भारती को मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देना पड़ा। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि पुरुषों की राजनीति वाले इस देश समाज में स्त्रियों को मोहरा बनाया जाता है।

मुखर नेत्री हैं बसपा की राम बाई

Rambai Parihar. Photo courtesy: The Hindu

बसपा की पथरिया विधायक राम बाई गोविंद सिंह परिहार अपने दबंग अंदाज में लोगों की मदद के लिए खूब चर्चा में रहती हैं। वे दमोह जिले के पथरिया विधान सभा क्षेत्र से बसपा के टिकट पर 2018 में चुनाव जीत पहली बार विधायक बनी थीं। बसपा ने अपने इस तेजतर्रार नेत्री पर फिर भरोसा जताया है।  राम बाई ने भी चुनाव जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बताया है। राम बाई  सदन में अपने क्षेत्र की जल बिजली की समस्याओं के साथ  महिलाओं के साथ होने वाले अभद्र व्‍यवहार को लेकर काफी मुखर रही हैं। उनके सवालों पर सदन में जोर शोर से विपक्षी पार्टियां  मेज तो थपथपाती हैं, लेकिन समाधान नहीं  मिल पाता। उनके काम से ज्‍यादा उनके दबंग अंदाज को मीडिया में हेडलाइन बनती है।

प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आईं निशा बांगरे हैं चर्चा में

हाल ही में मध्य प्रदेश के छतरपुर की डिप्‍टी कलक्‍टर के पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस पार्टी में शामिल हुईं निशा बांगरे ने अखबारों की खूब सुर्खिया बटोरीं। दरअसल,  इन्होंने अपने विभाग से सर्वधर्म सम्मान समारोह में शिरकत करने की छुट्टी मांगी थी। छुट्टी न मिलने की वजह से इन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद निशा का कांग्रेस पार्टी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा थी। इस कारण मध्‍य प्रदेश सरकार ने करीब चार माह तक इस्‍तीफा मंजूर नहीं किया।

Nisha Bangre. Photo courtesy: Dainik Jagran

कांग्रेस पार्टी के विधानसभा चुनाव के लिए उम्‍मीदवारों की सूची जारी करने के बाद और निशा की याचिका पर हाई कोर्ट के इस्‍तीफा पर जल्‍द फैसला लेने के निर्देश के बाद 23 अक्‍टूबर को सरकार ने चार माह बाद निशा का इस्‍तीफा मंजूर किया। इसके पहले निशा ने बैतूल जिला के अमला से भोपाल तक की करीब 300 किमी की पद यात्रा की और इस्‍तीफा मंजूर ना करने के लिए विरोध प्रदर्शन किया। जिसके लिए इन्‍हें एक दिन के लिए गिरफ्तार भी किया गया। निशा ने 23 जून 2023 को इस्‍तीफा दिया था । देर से इस्‍तीफा मंजूर होने के कारण निशा को कांग्रेस से टिकट नहीं मिल सका और वे चुनाव लड़ने से वंचित रह गईं। उन्‍होंने सवाल किया कि उनके चुनाव लड़ने से आखिर भाजपा क्‍यों डरती है? बहरहाल, मध्‍य प्रदेश कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष व पूर्व मुख्‍यमंत्री कमल नाथ ने कहा है कि चुनाव बाद निशा को महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी दी जाएगी।

कब बदलेगी महिलाओं की भागीदारी की तस्‍वीर

नारी शक्‍ति‍ वंदन विधेयक लागू होने के बाद मध्य प्रदेश विधानसभा में 76 महिला विधायकों का होना अनिवार्य होगा। इसके अलावा अन्य सीटों से भी महिलाओं को चुनाव लड़ने का अधिकार होगा। कांग्रेस की प्रमुख नेत्री शोभा ओझा ने नवभारत टाइम्स डॉट कॉम को दिए साक्षात्‍कार में कहा है  कि 33 प्रतिशत महिलाओं का चुनकर लोकसभा और विधानसभा में जाना गौरव की बात होगी। अब तक बमुश्‍किल 09-12 प्रतिशत महिलाएं ही सदन में पहुंच पाती थीं।

उनका मानना है कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने से भ्रष्टाचार में कमी आएगी और राजनीति में शुचिता बढ़ेगी। वहीं, बीजेपी नेत्री वंद

Photo courtesy: Shobha Ojha/X

ना त्रिपाठी ने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक की लंबे समय से देश में मांग हो रही थी। संसद में कई बार पेश करने के बावजूद यह पास नहीं हुआ…अब केंद्र की भाजपा सरकार ने  नए तरीके से इस  बिल को पेश किया है। जब नारी शक्‍त‍ि विधेयक धरातल पर लागू होगा तो राजनीति में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेंगे।

बता दें कि देश और राज्‍य की राजनीति में दबदबा रखने वाले सिंधिया परिवार की बेटी और भाजपा विधायक यशोधरा राजे ने स्‍वास्‍थ्‍य कारणों का हवाला देकर इस बार चुनाव लड़ने और पार्टी के लिए प्रचार करने से मना कर  दिया है। ग्वालियर की शिवपुरी सीट से उन्होंने भाजपा की टिकट पर जीत की हैट्रिक बनाई थी। वे 1998 से भाजपा से जुड़कर राजनीति में लगातार सक्रिय रहीं। मध्‍य प्रदेश में मंत्री पद संभाला। 2007 के उप चुनाव में ग्‍वालियर से सांसद बनीं। जनता ने उन्‍हें भरपूर प्‍यार और समर्थन दिया। देखा गया है कि विभिन्‍न राजनीतिक दलों से जिन मुट्ठी भर महिलाओं को राजनीति में अवसर मिले, वे या तो धनाढ़य वर्ग, राज घराना या कद्दावर राजनीतिज्ञों की पत्‍नी, बेटी या बहू रही हैं।

मीडिया कवरेज में महिला प्रत्‍याशी

मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में  कुल 57+1 निर्दलीय महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपनी किस्‍मत आजमाएंगी।  ठीक-ठाक संख्‍या में महिला उम्‍मीदवारों के होने पर भी नीचे दिए गए स्थानीय अखबारों की कतरनों में देखा जा सकता है कि मीडिया में भी महिला उम्‍मीदवारों को उचित स्थान नहीं मिल रहा है। बड़े-बड़े कार्टूनिस्ट भी अख़बारों के मुख्य पृष्ठ पर पुरुष उम्मीदवारों को ही प्रमुखता से छाप रहे हैं।

एक अखबार कवर पेज पर लिखता है – जागो सोचो और चुनो!  अब आई हमारी बारी  । इसमें मतदाता रूप में तो महिला की तस्‍वीर है, मगर सशक्‍त नेतृत्‍व की एक भी प्रतिनिधि तस्‍वीर नहीं है।

 

राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्‍व पर 2018  के  चुनावों में  महिला दिवस पर आठ मार्च को एडीआर  और नेशनल इलेक्शन वॉच की ओर से वुमन पॉलिटिकल पार्टिसिपेशन एंड रिप्रजेंटेशन रिपोर्ट जारी की गई। इसमें बताया गया ताकि लोकसभा और सभी  राज्य विधानसभाओं में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ नौ फीसदी है। यानी दोनों सदनों में  मौजूदा कुल 4,865 सदस्यों में से सिर्फ 440 ही महिला सदस्य हैं। वहीं मध्यप्रदेश में  महिलाओं को भागीदारी  राष्ट्रीय औसत से थोड़ी बेहतर है। राज्य विधानसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी 9.13 फीसदी और लोकसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी 17.24 फीसदी है। मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 21 पर महिला विधायक काबिज हैं, जबकि लोकसभा सदस्य की 29 सीटों में से पांच पर महिला सांसद काबिज हैं। राज्यसभा की 11 सीटों में से सिर्फ एक महिला सदस्य हैं।

महिला मतदाताओं को अपने पाले में करने की होड़

मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में विभिन्‍न राजनीतिक पार्टी खासकर कांग्रेस और भाजपा में महिला मतदाताओं को अपने पाले में करने की होड़ सी लगी है। राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिला वोटर्स को लुभाने के लिए बुदनी विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन भरने के बाद एक सभा में घोषणा कर दी कि वे अब आगामी पांच साल में हर बहन को लखपति दीदी बनाएंगे। लखपति दीदी का अर्थ घर संभालने के साथ ही एक लाख प्रति वर्ष की आय अर्जित करना। इसके पहले शिवराज सिंह की सरकार ने  अति  महत्वाकांक्षी योजना लाडली बहना का मई  2023  से क्रियान्वयन  कर 1250 महिलाओं के खाते में डालना  शुरू किया है। सरकार का वादा है कि वे इसे तीन हजार रूपये तक कर  देंगे। सिहोर जिले के हीरापुर गांव की पूर्व युवा सरपंच प्रीति बताती है, गांव में स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा सहित महिलाओं के अनेक मुद्दे हैं, जिनका समाधान दिए बिना महिलाओं को 1250 रुपये खाते में डालना, कोई मायने नहीं रखता । लाडली बहनों को लुभाने-रिझाने में कांग्रेस भी पीछे नहीं है। कांग्रेस ने घोषणा पत्र में सत्‍ता में आने पर महिला सम्‍मान योजना लागू कर महिलाओं के बैंक आकाउंट में 1500 रुपये जमा करने का ऐलान किया है। हालांकि भाजपा इस बार भी हिंदुत्व और सनातनी के एजेंडा लेकर आगे बढ़ जरूर रही है, लेकिन जीत के लिए दोनों बड़ी पार्टियां लाड़ली बहनों की तरफ बड़े हसरत से देख रहीं हैं।

इन छह सीटों पर दिलचस्‍प दंगल

Neena Verma. Photo courtesy: Dainik Jagran

पूरे  मध्य प्रदेश में छह सीटों पर मजेदार मुकाबला होने जा रहा है जिनमें कांग्रेस और भाजपा की महिलाएं आमने सामने हैं। बालाघाट में भाजपा की 43 वर्षीय इंजीनियर  मौसम बिसेन के सामने कांग्रेस की 57 वर्षीय एमए, बीएड अनुभा मुंजारे हैं। नेपानगर से भाजपा की 33 वर्षीय बीए पास मंजू , राजेंद्र दादू  के सामने कांग्रेस की 49 वर्षीय 10 वीं पास  गेंदू  बाई चौहान टक्‍क्‍र दे रही हैं पंधाना में  भाजपा की 49 वर्षीय बीए पास छाया मोरे  और कांग्रेस की 33 वर्षीय  बीई नंदू बारे के बीच कडा़ मुकाबला है। रैगांव में भाजपा की बीए  पास 49  वर्षीय प्रतिमा बागरी और कांग्रेस की 34 वर्षीय एमएस-सी. कल्पना वर्मा  जोर आजमाईश कर रही हैं। धार की भाजपा उम्मीदवार  नीना वर्मा,

जो ग्रेजुएट शिक्षित और पुराना चर्चित चेहरा है, उनका मुकाबला  कांग्रेस की  53 वर्षीय 12वीं  पास प्रभा देवी  गौतम से है । इसी तरह भीकन गाँव में भाजपा की 48 वर्षीय हायर सेकेंडरी पास नंदा ब्राह्मणे, कांग्रेस की 57 वर्षीय एम.ए., एल एलबी  झूमा सोलंकी के सामने हैं, झूमा सोलंकी चर्चित चेहरा हैं  और लगातार विधानसभा में भागीदारी  कर  रही  हैं

Jhuma Solanki. Photo courtesy: Jhuma Solanki/ Facebook

मध्य प्रदेश और आदिवासी राजनीति

बीते  वर्षों में आदिवासियों के लिए कई घोषणाओं में राज्य सरकार ने बड़ा दम- खम लगाया जन-जल-जंगल-जमीन पर उनके हक के लिए योजनाएं बनाई, क्‍योंकि देखा गया है कि‍ मध्‍य प्रदेश में जिस पार्टी को आदिवासियों के लिए संरक्षित सीटों पर बढ़त मिलती है, वहीं सरकार बनाता है। हालांकि लेकिन विधानसभा में चुनकर जब कोई आदिवासी महिला आती है तो उसे मंत्री बनाने में सरकारें कोई रुचि नहीं  दिखाती कांग्रेस ने हिना कांवरें को 2018 में जरूर सदन में उपाध्यक्ष बनाया, लेकिन सरकार ज्यादा चली नहीं। एक बात जो इन 20  वर्षों में सामने आती है, वह यह है कि आदिवासी महिलाओं की जीत तो पार्टियां चाहती हैं, लेकिन उन्हें सदन में ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता उनकी सीटें सरकार बनाने में सहायक तो होती हैं, लेकिन उनके क्षेत्र की समस्याओं पर कार्यवाही नहीं होती

Jamuna Devi. Photo courtesy: Dainik Bhaskar

आदिवासी बहुल अलीराजपुर के जोबट विधानसभा क्षेत्र से इस बार भाजपा ने सुलोचना रावत की बजाय उनके बेटे विशाल रावत को चुनावी मैदान में उतारा है। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस ने इस बार समान्य सीटों पर एसटी उम्मीदवार उतारा है, जिनका सीधा मुकाबला रीवा रियासत के महाराज पुष्पराज सिंह से है। राज्य में अनुसूचित जनजाति की 47  विधानसभा सीटें आरक्षित हैं।  मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में  महिला राजनेताओं का एक हद तक बोलबाला बना रहता है। मगर ऐसी मुखर नेत्रियों को धीरे-धीरे दरकिनार कर  देने का जिम्मा पार्टी और उनके  पोषित अखबार कर  देते हैं।

कांग्रेस की तेजतर्रार आदिवासी नेता और मंत्री रहीं स्व. जमुना देवी दिग्विजयी सरकार में खूब मुखर रहीं।

भाजपा के कार्यकाल में वे विधानसभा में विपक्ष की दमदार नेत्री बनीं रही। उन्‍होंने कई मौके पर स्‍पष्‍ट कहा कि मेरे क्षेत्र के लोग हमेशा से एक आदिवासी मुख्यमंत्री चाहते हैं।  हां,  मैं मुख्यमंत्री बनना चाहती हूं। मगर दिग्विजय सिंह की सरकार ने उन्‍हें महत्‍व नहीं दिया। उनका चेहरा और नेतृत्‍व ज्‍यादातर आदिवासी वोट पाने की रणनीति रही।

मध्य प्रदेश के 29 जिलों में पुरुषों के मुकाबले महिला वोटर्स  ज्यादा

यह बेहद सुखद है कि मध्‍य प्रदेश के कुल 55 जिलों में से 13 जिलों के 29 विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की संख्‍या पुरुष मतदाताओं से अधिक है। इनमें छह आदिवासी बहुल जिले शामिल हैं। आश्‍चर्यजनक है कि कम साक्षरता दर वाले गरीब जिलों में अपेक्षाकृत  बालक और बालिका लिंगानुपात बेहतर है। इन जिलों में बालाघाट, झाबुआ, बड़वानी, धार, मंडला, रतलाम, अलीराजपुर, सिवनी, डिंडोरी, अनूपपुर, छिंदवाड़ा, उज्‍जैन और इंदौर शामिल हैं। पहले महिला वोटर्स का वोट अनिश्चित होता था। अधिसंख्य महिलाएं  पति/पिता/भाई के कहने पर पार्टी विशेष को वोट देती थी। मगर अब बहुत अधिक नहीं तो थोड़े से कुछ ज्‍यादा बदलाव पहले की अपेक्षाकृत बदलाव की बयार है। महिलाएं चुनाव में अपने मुददों का महत्‍व समझती हैं। यही वजह है कि सभी राजनीतिक दलों ने महिलाओं को लुभाने-रिझाने के लिए कल्‍याणकारी योजनाओं और मुफ्त रेवडि़यों की झड़ी लगा दी है। माना जा रहा है कि इन 13 जिलों के 29 विधान सभा क्षेत्र हार-जीत का गणित तय करेंगे।

जीत के दावे

हमने अनुभव किया है जिस संस्थान का जिस पार्टी विशेष या व्यक्ति में रूचि होती है, उनका चुनावी सर्वे रिपोर्ट पक्ष विशेषसे प्रभावित होता है। यही वजह है कि अधिकांश सर्वे रिपोर्ट 100  फीसदी खरे नहीं उतरते। इस बीच इंडिया टीवी- सीएनएक्स के ओपिनीयन सर्वे में दावा किया है कि 230 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 115 सीट पर जीत हासिल कर सकती है, जो बहुमत के आंकड़े 116 के बेहद करीब है। साथ ही कांग्रेस को 110 सीटों पर जीत मिलती दिख रही है। इसके साथ ही निर्दलीय समेत अन्य के लिए  पांच सीटें जीतने की संभावना है।

तीन दिसंबर को आएंगे चुनाव परिणाम

मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में साढ़े दस लाख वोटर पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। मध्य प्रदेश चुनाव आयुक्त अनुपम राजन सोशल मीडिया पर पेड  पोस्ट को ट्रैक करने के सिस्टम को लेकर कहते हैं, राज्‍य चुनाव आयोग सोशल मीडिया पर कड़ी नजर बनाए हुए हैं।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर है। इस बार जनमत किसके पक्ष में होगा, यह तीन दिसंबर को चुनाव परिणाम के आने पर ही पता चलेगा।

विधुल्लता ,संपादक “औरत” मासिक पत्रिका ,पिछले 22 बरसों से सक्रिय पत्रकारिता में हिस्सेदारी ,मध्यप्रदेश की जेलों में आजीवन करवासी महिलाओं ,बुनकर महिलाओं राजनैतिक महिलाओं , कृषक महिलाओं पंचसरपंच ,बैंकर्स महिलाओं पर लगातार काम / 

Edited by Sumita Jaiswal

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