By वर्षा सिंह
पुरुषों के वर्चस्व वाले खेल कुश्ती की पहलवान विनेश फोगाट हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में जिंद के जुलाना विधानसभा सीट से पहली बार राजनीतिक मैदान में उतरी हैं। पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण या रजत पदक की प्रबल दावेदार विनेश हरियाणा के राजनीतिक दंगल में कांग्रेस की टिकट पर मैदान में हैं। देखना यह है कि अपनी बेटियों को खेलों में खुले दिल से बढ़ावा देनेवाला हरियाणा राजनीति के मैदान में भी उनका स्वागत करता है कि नहीं ? दरअसल, आज भी हरियाणा का पितृसत्तामक समाज राजनीतिक मैदान में बेटियों को उनकी भागीदारी नहीं दे पाया है। यहां के सियासत की सच्चाई यह भी है कि हरियाणा को आज तक कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं मिली है।
पेरिस ओलंपिक में भारत के कुल 1,174 खिलाड़ियों में सिर्फ हरियाणा के 24 थे। इनमें 14 यानी 50 प्रतिशत महिला खिलाड़ी थीं। वहीं राजनीति के मैदान को देखें, तो महिलाएं दिखती ही नहीं। कुछ लड़ भी लेती हैं, तो लोग उन्हें वोट से वंचित रखते हैं।
पेरिस ओलंपिक में 50 किलोवर्ग श्रेणी में मात्र 100 ग्राम वज़न ज्यादा होने की वजह से फाइनल में डिस्क्लाविफ़ाई होने से ठीक पहले विनेश ने एक ही दिन में तीन बड़े चैंपियन्स को पटखनी दी थी। उनकी इस सफलता ने भारत के खेल प्रेमियों की धड़कन और उम्मीद बढ़ा दी। लगा कि एक स्वर्ण नहीं तो रजत पदक निश्चित है, लेकिन वजन के फेर में वह मुकाबले से बाहर हो गईं। रात भर वज़न कम करने की उनकी जीतोड़ कोशिश को भी लड़ाकू और दृढ़ संकल्पित खिलाड़ी की छवि के रूप में देखा गया। यही वजह थी कि बिना मेडल के भी हरियाणा लौटने के बाद उनका स्वागत लोगों ने किसी गोल्ड मैडलिस्ट की तरह ही किया। अब जुलाना विधानसभा सीट की लड़ाई इस मायने में भी दिलचस्प हो चली है कि विनेश की लोकप्रियता वोटों में तब्दील होती है कि नहीं।
सामाजिक कार्यकर्ता और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में फ़िज़िकल एजुकेशन की प्रोफ़ेसर डॉक्टर संतोष दहिया को लैंगिक समानता के लिए उत्कृष्ट काम करने के लिए राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित किया गया है। वह सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत की पहली महिला अध्यक्ष भी हैं। वह कहती हैं कि हरियाणा में जो मजबूत होता है, लोग उसके साथ खड़ा होना पसंद करते हैं। लोग विनेश के साथ इसलिए हैं, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ़ ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन किया बल्कि दिल्ली में महिला पहलवानों के शोषण के ख़िलाफ़ आवाज उठाई और एक ऐसे बाहुबली के ख़िलाफ़ संघर्ष किया, जिसे सत्तासीन सरकार का खुला समर्थन था। डॉक्टर संतोष कहती हैं कि विनेश को सिर्फ़ जाटों का नहीं सभी वर्गों के युवाओं का समर्थन है। वे महिला शक्ति की प्रतीक बन गई हैं। हालांकि राजनीति के खेल में अभी उनकी जंग बाकी है। जब तक वह कुश्ती के मैदान में थीं, तब तक तो उन्हें सबका समर्थन था, लेकिन राजनीति के मैदान में उतरने के बाद उन्हें नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और हरियाणा में इस मैदान पर महिलाओं का स्वागत बमुश्किल होता।
हरियाणा में पांच अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा और आठ अक्टूबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे। इस बार महिला उम्मीदवारों की संख्या 51 है। प्रमुख राजनीतिक दलों ने जिन महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है, उनमें से अधिसंख्य या तो राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं या फिर कोई चर्चित चेहरा हैं। आरती सिंह राव, श्रुति चौधरी, विनेश फोगाट, सावित्री जिंदल, चित्रा सरवारा, राबिया किदवई समेत ऐसे ही कुछ नाम हैं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 11 महिला उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सबसे अधिक 12 महिला उम्मीदवार खड़े किए हैं। इसके अलावा इंडियन नेशनल लोकदल (आइएनएलडी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 11-11 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और आजाद समाज पार्टी ने आठ तो आम आमदनी पार्टी (आप) ने 10 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
अशोका यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार 2000 से 2019 तक हुए पांच चुनावों में 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व का औसत नौ फ़ीसद से भी कम रहा है। 12वीं विधानसभा में सबसे ज़्यादा 13 महिला विधायक बनीं, लेकिन 2019 में 13वीं विधानसभा में यह संख्या घटकर फिर नौ पर आ गई। हरियाणा विधानसभा में महिलाओं की चुटकी भर भागीदारी यह सवाल खड़ा करती है कि शिक्षा और खेल में बेटियों को प्रोत्साहित करने वाले राज्य में राजनीति और नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व इतना कम क्यों है?
डॉक्टर संतोष कहती हैं कि इसकी वजह हरियाणा के समाज में गहरे पैठी हुई पितृसत्तात्मक सोच है। आज भी लड़कियों को ऊंचा न बोलने, आंख न मिलाने, बहस न करने की सीख दी जाती है। वह कहती हैं कि हरियाणा में बेटियों का सम्मान तो बहुत है, लेकिन उन्हें एक दायरे से बाहर जाने की इजाज़त भी नहीं होती। वह राजनीति में आ भी जाएं तो भी उन्हें मौके आसानी से नहीं मिलते और पुरुष उनका नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं होते।
2011 की जनगणना के अनुसार देश में सबसे ख़राब लिंगानुपात 833 हरियाणा का ही था। यह 1901 के 867 से भी ख़राब था। हालांकि डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 के इसमें सुधार होना शुरू हुआ और 2019 तक यह 876 से 923 पर पहुंच गया था। 2023 के पहले सात महीने में यह गिरकर 906 पर पहुंच गया था। डॉक्टर संतोष कहती हैं कि हिसार के एक गांव मोजादपुर में एक समय लिंगानुपात 275 था।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र यादव कहते हैं कि भविष्य में क्या होगा, यह कहना (कम से कम राजनीतिक क्षेत्र में) अक्लमंदी नहीं होती। माना जा रहा है कि हरियाणा में यदि इस बार कांग्रेस सरकार बनी तो कुमारी शैलजा सरकार का नेतृत्व करें। इसके साथ ही राज्य का प्रभावशाली जाट वर्ग विनेश फोगाट के पक्ष में भी लॉबिंग कर सकता है। विनेश को इस समय भावनात्मक समर्थन है और इसलिए राजनीतिक अनुभव के बगैर भी वह मुख्यमंत्री की रेस में शामिल हो सकती हैं।
वर्षा सिंह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो पर्यावरण, जलवायु और सामाजिक मुद्दों को कवर करती हैं।
संपादन – सुमिता जायसवाल
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